Saturday 13 April 2013

  सुन्हरा सपना 





















वो भीड़ तो जैसे खो सी गई 

जो दवारे मेरे आती थी !

अपनी नन्ही झोली मै 

खुशिया हज़ार लाती थी !

मै बावरी देख उसे देख झूम झूम इतराती थी 

उसको अपने सुन्दर सपने में 

राज्यभॊग कराती थी !

वो बन जाता था शहज़ादा 

मै दासी बन फूली ना समाती थी !

हस्ती झूमती , नटखट  हरकत से सब का मन्न बहलाती थी !

कभी कभी नन्हे हाथो से भीगी पलके सहलाती थी !

फिर  अपने  गले लगा के हस्ती खिलखिलाती  थी! 

अपने याराना के किस्से शान से सुनाती थी !

मै तोह उसके सपने में ही पूरी दुनिया जी जाती थी !

फिर एक पल ऐसा आया , भीड़ दवारे से छट सी गई 

बहती हवा मानो रुख मूड ले गई 

और धीरे धीरे सपनो में भी 

आना उसने छोड़ दिया !

नीरस जीने से अच्हा था 

मेने सपनो से ही मुह मूड लिया !
                                  
                                                                                                       शिल्पा अमरया