सुन्हरा सपना
वो भीड़ तो जैसे खो सी गई
वो भीड़ तो जैसे खो सी गई
जो दवारे मेरे आती थी !
अपनी नन्ही झोली मै
खुशिया हज़ार लाती थी !
मै बावरी देख उसे देख झूम झूम इतराती थी
उसको अपने सुन्दर सपने में
राज्यभॊग कराती थी !
वो बन जाता था शहज़ादा
मै दासी बन फूली ना समाती थी !
हस्ती झूमती , नटखट हरकत से सब का मन्न बहलाती थी !
कभी कभी नन्हे हाथो से भीगी पलके सहलाती थी !
फिर अपने गले लगा के हस्ती खिलखिलाती थी!
अपने याराना के किस्से शान से सुनाती थी !
मै तोह उसके सपने में ही पूरी दुनिया जी जाती थी !
फिर एक पल ऐसा आया , भीड़ दवारे से छट सी गई
बहती हवा मानो रुख मूड ले गई
और धीरे धीरे सपनो में भी
आना उसने छोड़ दिया !
नीरस जीने से अच्हा था
मेने सपनो से ही मुह मूड लिया !
शिल्पा अमरया
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